29 April 2010

Jainam Jayati Shashanam


संसारमें भ्रमित जीव...........!!!!!

संसारी जीव कभी चैन नहीं पाता.अपने मोह;राग द्वेष  के कारण भ्रमित होकर वह अनादिकालसे  दुःख उठा रहा है. वह हिंसा  के कार्य करके अपनेको सुखी समज़ता है .झूठ बोलकर स्वयं को चतुर मानता है .दुसरेके धन हरण करके अपनी शक्ति का प्रतिक मानता  है और परिग्रह की वृद्धि में अपना बड़प्पन समझता है ;जबकि यही पाप प्रवृतिय उसके संसार का कारण है.  

MahaMantra Namokar

णमो अरिहन्ताणम्
णमो सिद्धाणम्
णमो आइरियाणम्
णमो उवज्झायाणम्
णमो लोए सव्वसाहूणम्
एसो पन्च णमोकारो
सव्वपावप्पणासणो
मंगलाणम् च सव्वेसिम्
पढमम हवई मंगलम्

27 April 2010

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Om Hrim Namh.......!!!!!

Jay Jinendra....!!!!!!

Jago Jago Jago....!!!!

Antar Gnatiy Marriage Karne se MAnusy aahar denek,abhishek,poojan k yogy nai hota.MOHANDH me faskar JAIN kulme janm lena bekar mat karo
Jago



Om Hrim Namh...

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Jay Jinendra....!!!!

(1) अरिहंत नाम लाडू और सिद्ध नाम घी
साधू नाम शक्कर,तू घोल घोल पी||

(2)
दो गोरे दो संवारे दो हरियल दो लाल
सोलह स्वर्ण सामान है, सो बूंदों तिहु काल||

(3)
जब मैं आया जगत मैं,
जगत हँसा हम रोये|
ऐसी करनी कर चले
आगे हंसी ना होए||

(4)
तुम बिन मैं व्याकुल भयो जैसे जल बिन मीन,
जन्म जरा मेरी हरो करो मोहे स्वाधीन||

(5)
जो सोया हो नीद मैं उसे जगाया जाये,
जाग कर जो सो रहा उसको कौन जगाये||

(6)
जो जगत के देव थे मैं पास उनके भी गया,
वे बेचारे खुद दुखी मेरी हरेंगे पीर क्या||

(7)
जिब्या बड़ी उतावली बोले ताल कुताल|
आप बोल भीतर चली थप्पड़ खावे गाल||

(8)
बड़े बड़ाई न करे,बड़े न बोले बोल|
हीरा मुख ते ना कहे,लाख हमारा मोल||

Om Hrim Namh...!!!!

Jay Jinendra

26 April 2010

Jain Hai Hum..........!!!!!!!!!!!

हम नहीं दिगंबर, श्वेताम्बर, तेराह्पंथी, स्थानकवासी, हम एक पंथ के अनुयायी, हम एक देव के विश्वासी| हम जैन, अपना धर्म जैन, इतना ही परिचय केवल हो,हम यही कामना करते है, आने वाला ऐसा ही कल हो |
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* बड़ों के दोष न देखने का गुण मुझ में स्वभाव से ही था । बाद में इन शिक्षक के दूसरे दोष भी मुझे मालूम हुए थे । फिर भी उनके प्रति मेरा आदर बना ही रहा । मैं यह जानता था कि बड़ों का आज्ञा का पालन करना चाहिये । वे जो कहें सो करना करे उसके काजी न बनना ।
* श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को काँवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिये ।
* इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिशचन्द का आख्यान था । उस बारबार देखने की इच्छा होती थी । लेकिन यों बारबार जाने कौन देता ? पर अपने मन में मैने उस नाटक को सैकड़ो बार खेला होगा । हरिशचन्द की तरह सत्यवादी सब क्यों नहीं होते ? यह धुन बनी रहती । हरिशचन्द पर जैसी विपत्तियाँ पड़ी वैसी विपत्तियों को भोगना और सत्य का पालन करना ही वास्तविक सत्य हैं ।
* मेरी राय हैं कि घनिष्ठ मित्रता अनिष्ट हैं, क्योंकि मनुष्य दोषों को जल्दी ग्रहण करता हैं । गुण ग्रहण करने के लिए प्रयास की आवश्यकता हैं । जो आत्मा की, ईश्वर की मित्रता चाहता हैं, उसे एकाकी रहना चाहिये, अथवा समूचे संसार के साथ मित्रता रखनी चाहिये । ऊपर का विचार योग्य हो तो अथवा अयोग्य, घनिष्ठ मित्रता बढ़ाने का मेरा प्रयोग निष्फल रहा ।
* इस प्रकार की शान्त क्षमा पिताजी के स्वभाव के विरुद्ध थी । मैने सोचा था कि वे क्रोध करेंगे, शायद अपना सिर पीट लेंगे । पर उन्होंने इतनी अपार शान्ति जो धारण की , मेरे विचार उसका कारण अपराध की सरल स्वीकृति थी । जो मनुष्य अधिकारी के सम्मुख स्वेच्छा से और निष्कपट भाव से अपराध स्वीकार कर लेता हैं और फिर कभी वैसा अपराध न करने की प्रतिज्ञा करता हैं, वह शुद्धतम प्रायश्चित करता हैं ।
* नीति का एक छप्पय दिल में बस गया । अपकार का बदला अपकार नहीं, उपकार ही हो सकता हैं , यह एक जीवन सूत्र ही बन गया । उसमे मुझ पर साम्राज्य चलाना शुरु किया । अपकारी का भला चाहना और करना , इसका मैं अनुरागी बन गया । इसके अनगिनत प्रयोग किये। वह चमत्कारी छप्पय यह हैं :
पाणी आपने पाय, भलुं भोजन तो दीजे
आवी नमावे शीश , दंडवत कोडे कीजे ।
आपण घासे दाम, काम महोरोनुं करीए
आप उगारे प्राण, ते तणा दुःखमां मरीए ।
गुण केडे तो गुण दश गणो, मन, वाचा, कर्मे करी
अपगुण केडे जो गुण करे, तो जगमां जीत्यो सही ।
(जो हमें पानी पिलाये , उसे हम अच्छा भोजन कराये । जो हमारे सामने सिर नवाये, उसे हम उमंग से दण्डवत् प्रणाम करे । जो हमारे लिए एक पैसा खर्च करे, उसका हम मुहरों की कीमत का काम कर दे । जो हमारे प्राण बचाये , उसका दुःख दूर करने के लिए हम अपने प्राणो तक निछावर कर दे । जो हमारी उपकार करे , उसका हमे मन, वचन और कर्म से दस गुना उपकार करना ही चाहिये । लेकिन जग मे सच्चा और सार्थक जीना उसी का हैं , जो अपकार करने वाले के प्रति भी उपकार करता हैं ।

Raatri Bhojan Ka Tyaag.........!!!!

रात्री भोजनसे हानियां

१ ज्ञानी भगवंत रात्री भोजन को तिर्यंच - नरक का आश्रव व्‍दार कहते हैं|
२ शरीर रोगी,आलसी बनता है और मनमें विकार पैदा होते है|
३ नरक गति असाता वेदनीय आदि अशुभ कर्म बंधते है|
४ तिर्यंच गति में पराधिनता व कत्‍तलखानेमे कट जाना पडता है|
५ ध्यान,आत्मचिंतन,स्‍वाध्याय में बाधा उत्‍पन्‍न होकर स्‍मरण शक्‍ति कमजोर होने लगती है|
६ मानवीय प्रवृत्‍तियाँ तामसिक प्रवृत्‍तियो में बदलने लगती है|
७ पाचन संबधी अनेक रोग पैदा होने लगते है|
८ मधुमेह (डायबेटीस), मोटापा (ओबेसिटी) अँसेडिटी आदि रोग पैदा होने लगते है| इसका मुख्‍य कारण रातमें सुर्य के गर्मी का अभाव है|

रात्री भोजन आरोग्य के साथ वैज्ञानिक, आध्‍यात्‍मिक, सामाजिक एवं परिवारिक दृष्‍टिकोनसे अनुपयोगी (घातक) हैं, हानिकारक है,प्रकृती विरूध्‍द है|

activities:

रात्री भोजन के त्‍यागसे लाभ:

१ जिसका पालन करने से महीने में १५ उपवास का लाभ होता है|
२ प्रतिक्रमण - स्‍वाध्‍याय - ध्‍यान आरामसे हो सकते है|
३ आत्मा अनेक पापोंसे बच जाती है|
४ मै जैन हूँ, ऐसे गौरव की अनुभूति होती है|
५ मनुष्‍य भव पाप करनेके लिये नही बल्‍कि पुण्‍य करनेके लिये मिला है|
६ रातके वक्‍त भोजन में जू, गिरने से जलोदर,मक्‍खीसे उल्‍टी, चींटीसे बुध्‍दि का नाश, मकडी के जाल से कोढ, विषौले जन्‍तुऔंकी लारसे मृत्‍यू, लकडी की फांस आनेसे तलवा छिद जाता है, बाल आनेसे स्‍वरभंगसे उल्‍टी व दस्‍ते होती है| शरीर अस्‍वस्‍थ होकर आलस बढता है|

८४ लाख योनि में जन्‍म - मरणका चक्र चलता रहेगा|अज्ञान पाप कारक है ज्ञान पाप निवारक है|ज्ञानी बनिये पाप छोडीये| धर्म आदरीये यही एकान्‍त मुक्‍ति एवं सुख शांती का श्रेष्‍ठ मार्ग है|

अतः स्‍वास्‍थ प्रेमियों के लिये त्यागने योग्‍य है| इस लिये यथा संभव दिनमें ही सुर्यास्‍त के पहले भोजन करनेका प्रयास करना चाहिये | रात्रि भोजन न करना यह जैनियोंकी आज भी पहचान बनी हुई है|अतः इसे बरकरार रखना आप सभी का परम कर्तव्‍य है|

Humble Request...!!!!

Jay Jinendra

Humble Request to All Jain Brothers and Sisters……..
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JOIN JAINAAGAM

And send it on either on this No. 92195 92195  or  567 678

Ø  Please leave one Blank Space after JOIN.
Ø  This group Facility is only for Dharm Prabhavana and nothing else.

25 April 2010

JAINAAGAM...!!!!

JAY JINENDRA, This Group is for all Jains to Provide JAIN Religious AaGaM Messages. For getting FREE Messages for LiFe TiMe on Your Mobile , Please Type Text Message on Your Mobile JAINAAGAM And Send it to 567678 or 92195 92195 ---> Please Also Write on "Notice Board" to your nearer Religious Jain Places. Jay Jinendra

Namokar Mantra Ke Nam.....

Namokar Maha Mantra ke Nam

  1. Maha Mantra
  2. Anadi Mantra
  3. Namaskar Mantra
  4. Navakar Mantra
  5. Mul Mantra
  6. Panch Mantra
  7. MangalSutra
  8. Aparajit Mantra
  9. Amoh Mantra
  10. Mantra Raj
  11. Parmethi Mantra
  12. SarvBhogik Mantra 
  13. Trailokik Mantra
  14. Sarvkalik Mantra
Om Hrim Namh......

Jay Jinendra.......

Jago Jain Jago......!!!!!!!!

AntarGnatiymarriage karnewala vyakti Janm-JanmanTar tak NichKul me Janm lete Hue 84Lac Yonio me Bhatakta Rehta he
Mohand se Bacho 



Jay Jinendra


Om Hrim Namh.....!!!!!!

Humble Request........!!!!!!

Apane Jain Bhai,
Mitra; Relatives Ko
Kahiye Unke Mobile se
CAPITAL
text Msg. Kare
JOIN JAINAAGAM
send to 567678

Aaj Ka Sawal.........?????????

Aajka saval
Sabse kam Ganadhar Kounse Tirthankar k the?

V Wil giv u All Ans.Fr 26to30April.
Plz join Frnd,Relative other Jains to dis Grup

Om hrim Namh

Jay Jinendra.......

24 April 2010

Jay Jinendra.......!!!!!!

JAY JINENDRA,
This Group is for all Jains to Provide JAIN Religious AaGaM Messages.

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