16 May 2010

Jain Ke Chinh.......!!!!!!

Char Chinh Hain JAIN ke,Jaano JAin Sujan.
Din Bhojan
Jin Darshna nit
Roj Piye Jal Chhan
Japy Karo



Om Hrim Namh....!!!!


Jay Jinendra....!!!!!


Jago Jain Jago

04 May 2010

Do you know??

आत्मा के सन्दर्भ में यह तो जान पड़ता है कि ये शरीर के साथ मिलकर ही अपनी उपस्तिथि दर्ज कराती है,,,,
यही बात शरीर के सन्दर्भ में भी लागू होती है कि यह आत्मा के बिना सिर्फ एक पदार्थ है जो ज्ञान और दर्शन से रहित है,,,,,,,
इन दोनों का मिलन एक पर्याय को जन्म जरूर देता है.... पर उस पर्याय का वास्तविकता में कोई अस्तित्व नहीं है,,,,,,
ये पर्याय पिता-पुत्र हो सकती है पर आत्मा या पदार्थ--- पिता-पुत्र नहीं हो सकते,,,हिन्दू-मुस्लिम नहीं हो सकते,,,,स्त्री-पुरुष नहीं हो सकते...इनको वर्गीक्रत नहीं किया जा सकता,,,
सारे गुण और अवगुण आत्मा के ही लक्षण है एवम जिनका विकास और विनाश आत्मा कि पर्यायिक (physical) यात्रा पर यानि आपकी अपनी यात्रा पर निर्भर करता है.....

याद रखो पर्याय कि मांग पदार्थ हो सकते है पर आत्मा कि मांग सिर्फ ज्ञान है

> क्या आपका सांसारिक पदार्थों या क्रियाओं के प्रति होने वाला मोह आत्मा को विकसित करेगा ?
> आप इस पर्याय कि मांग को महत्त्व देते है या आत्मा कि मांग को ?
> क्या आपको लगता है आप विकास कि राह पर चल रहे हैं ?

आत्मपरीक्षण :-


यदि आपको जैन कुल मिला है , क्या आप इसपर गर्व करते है ?
क्या आपकी आँख सूरज उगने से पहले खुल जाती है ?
क्या आप अपना खाना बिना शिकायत चुपचाप खा लेते है ?
क्या आप बिस्तर पर सोने के बाद जल्दी सो जाते है ?
क्या आप प्रतिदिन उत्तम पुस्तक पढ़ लेते है ?
क्या आप वस्त्राभूषण दुसरोंको दिखने के लिए पहेनते है ?
क्या आप श्रम को सर्वश्रेष्ठ कर्म समझते है ?
क्या आप क्रोध आने पर जल्दी शांत होते है ? 
क्या आप गुणवानो की अच्छाई करते है ? मूर्खो से भी शिक्षा ग्रहण करते है ?
क्या आप अपनी शानोशौकत की पूर्ति के लिए आय से अधिक खर्चा करते है ?
क्या आप अपनी अच्छाईया और दुसरो की बुराईया करते है ?
क्या किसी का मेहमान बनते समय काम में हाथ बटाते है ? 
क्या एक बार की हुई भूल को दूसरी बार नहीं करने की कोशिश करते है ?
क्या आप बड़ो का विनय करते है ?
क्या आप अपने घर , परिवार , धर्म , और समाज का मान रखते है ?
क्या आपको अपने भगवन , जिनवाणी , णमोकार मंत्र पर भरोसा है ?

.......जय जिनेन्द्र....


     जय जिनेन्द्र का अर्थ है , 'जय ' यानी जयवंत रहो , जयवंत हो जाओ ऐसा भी होता है ! जयवंत हो जाओ , विजयी बनो , जिनेन्द्र भगवन के सामान विजयी बनो , जीतने के लिए संसारी प्राणी के पास बहोत कुछ है ,जीतने के जो विषय है वो अन्तरंग में है , विजय किसपर पाना , एक विकारी भाव और दूसरा विकार भाव उत्पन्न करनेवाले पर विजय पाना है !
     
जो संसारी प्राणी दुःख से पीड़ित है उसे जय जिनेन्द्र बोलते है , जिनेन्द्र भगवन ने अपने आत्मा के विकारी भावों को जीतकर संसारी वास्तु को जीत लिया है , वैसे ही दुखी व्यक्ति भी दुःख को जीतकर सुखी हो.....! जय जिनेन्द्र.....

यदि आप शाकाहारी है तो ये बात याद रखे :-


1) चाँदी का वर्ख ( सिल्वर पेपर ) शुद्ध नहीं है.. जो मिठाई और ऐसे चीजो में यूज होती है....
2) बोनचायना , क्रोकारी , चीनी माती के बर्तन अशुद्ध है....
3) आइस क्रीम ( कस्टर्ड )......
4) चौकलेट , केक , पनीर .....
5) पान , मसाला , गुटखा ,तम्बाकू शुद्ध नहीं है....
6) शाम्पू , सेंट , नेलपॉलिश , लिपस्टिक ये सब अशुद्ध वास्तु है...
7) शहद....
8) रेडीमेड  आटा अशुद्ध है....
9) रेशमी कपडे शुद्ध नहीं है....